हिंदी कविता || Hindi kavita, हिंदी शायरी || Hindi shayari, Ghazal, Inspirational, Motivational and Educational quotes, Political satire and Videos in Hindi.
28/12/2018
20/12/2018
Funy cat song video - Dard gar door na ho sharab se
दर्द गर दूर ना हो शराब से,
दीवानगी की दवा दीवाना क्या करे।
दिल ही जले तो हाथों से दबोच ले,
गर बदन जल उठे तो बेचारा क्या करे।
ज़ख्म कोई एक हो तो सीं ही लेता,
ज़ख्म पर ज़ख्म हो तो बेचारा क्या करे।
भिगोती सावन की झड़ी तो कहीं छुप जाते,
भिगोए अश्कों की लड़ी तो बेचारा क्या करे।
इश्क से बढ़कर कोई नशा नहीं होता,
किसी को इश्क ही छले तो बेचारा क्या करे।
भूपेंद्र पथरिया
19/12/2018
17/12/2018
13/12/2018
08/12/2018
Hindi kavita - Kya sahi kya galat
हिंदी कविता
क्या सही क्या ग़लत
सही और ग़लत का तराजू सभी का अलग है।
लो देख लो दुनियां में क्या सही, क्या ग़लत है।
हम लेट हों और ट्रेन भी लेट हो जाए तो सही।
हम समय पर हों, ट्रेन लेट हो जाए तो ग़लत है।
अगर प्यार किसी से हम करने लगें तो सही।
कोई दूसरा किसी से प्यार करने लगे तो ग़लत है।
रास्तों पर कोई इंतज़ार हमारा करे तो सही।
हमें किसी का इंतज़ार करना पड़े तो ग़लत है।
दुनियां में हर कोई हमारे मुताबिक़ चले तो सही।
हमें दुनियां के मुताबिक़ चलना पड़े तो ग़लत है।
हर किसी का हमसे हर एक उम्मीद रखना सही।
मगर हम किसी से कोई उम्मीद रख लें तो ग़लत है।
हम सभी की ज़रूरतों को पूरा कर दें तो सही।
अपनी ज़रूरत किसी के सामने रख दें तो ग़लत है।
हम किसी की आंखों में धूल झोंक दें तो सही।
हमारी आंखों में कोई धूल झोंक दे तो ग़लत है।
हम टाँगड़ी मारकर के आगे निकल जाएं तो सही।
कोई दौड़ कर हमसे आगे निकल जाए तो ग़लत है।
ज़िंदगी की हर शह हमारे मुताबिक़ हो तो सही।
शह किसी और के मुताबिक़ हो जाए तो ग़लत है।
हैं तो अभी दुनियां में ऐसे और भी बहुत से सवाल।
मगर हर सवाल की हकीक़त कह देना भी ग़लत है।
भूपेंद्र पथरिया
05/12/2018
04/12/2018
22/11/2018
20/11/2018
02/11/2018
31/10/2018
Hindi kavita - Kis rah pe chalen tu hi bata e zindagi
किस राह पे चलें तू ही बता ए ज़िंदगी,
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
ज़ख्म इतने गहरे लग चुके हैं पहले ही,
कि हर ज़ख्म में अब भी दर्द का असर है।
किस राह पर चलें तू ही बता ए ज़िंदगी........
जिस राह पर भी चले मंजिले मकसूद की ओर,
मंजिले मकसूद से पहले ही गुमराह हो गए।
ढूंढते रहे एक आशियां पनाह के वास्ते,
आशियां मिलने से पहले सब रास्ते फना हो गए।
अब किसको पुकारूं, किसे आवाज़ दूं.....,
कौन हमसफर हैं।
किस राह पे चलें तू ही बता ए जिंदगी
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
यूं ही चीखते चिल्लाते रहे दर ब दर,
गूंगे बहरों को अपनी कहानियां सुनाते रहे।
सर फोड़ डाला मगर कुछ भी ना मिला इधर,
बस गली कूचों में ठोकरें खाते रहे।
लौट भी जाऊं तो कैसे, किससे पूछूं.....,
कि मेरा घर किधर है।
किस राह पर चलें तू ही बता ए ज़िंदगी,
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
ज़ख्म इतने गहरे लग चुके हैं पहले ही,
कि हर ज़ख्म में अभी दर्द का असर है।
किस राह पर चलें तू ही बता ए ज़िंदगी......
Bhupendra Patharia
Bhupendra Patharia
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