दर्द गर दूर ना हो शराब से,
दीवानगी की दवा दीवाना क्या करे।
दिल ही जले तो हाथों से दबोच ले,
गर बदन जल उठे तो बेचारा क्या करे।
ज़ख्म कोई एक हो तो सीं ही लेता,
ज़ख्म पर ज़ख्म हो तो बेचारा क्या करे।
भिगोती सावन की झड़ी तो कहीं छुप जाते,
भिगोए अश्कों की लड़ी तो बेचारा क्या करे।
इश्क से बढ़कर कोई नशा नहीं होता,
किसी को इश्क ही छले तो बेचारा क्या करे।
भूपेंद्र पथरिया
No comments:
Post a Comment