हिंदी कविता
क्या सही क्या ग़लत
सही और ग़लत का तराजू सभी का अलग है।
लो देख लो दुनियां में क्या सही, क्या ग़लत है।
हम लेट हों और ट्रेन भी लेट हो जाए तो सही।
हम समय पर हों, ट्रेन लेट हो जाए तो ग़लत है।
अगर प्यार किसी से हम करने लगें तो सही।
कोई दूसरा किसी से प्यार करने लगे तो ग़लत है।
रास्तों पर कोई इंतज़ार हमारा करे तो सही।
हमें किसी का इंतज़ार करना पड़े तो ग़लत है।
दुनियां में हर कोई हमारे मुताबिक़ चले तो सही।
हमें दुनियां के मुताबिक़ चलना पड़े तो ग़लत है।
हर किसी का हमसे हर एक उम्मीद रखना सही।
मगर हम किसी से कोई उम्मीद रख लें तो ग़लत है।
हम सभी की ज़रूरतों को पूरा कर दें तो सही।
अपनी ज़रूरत किसी के सामने रख दें तो ग़लत है।
हम किसी की आंखों में धूल झोंक दें तो सही।
हमारी आंखों में कोई धूल झोंक दे तो ग़लत है।
हम टाँगड़ी मारकर के आगे निकल जाएं तो सही।
कोई दौड़ कर हमसे आगे निकल जाए तो ग़लत है।
ज़िंदगी की हर शह हमारे मुताबिक़ हो तो सही।
शह किसी और के मुताबिक़ हो जाए तो ग़लत है।
हैं तो अभी दुनियां में ऐसे और भी बहुत से सवाल।
मगर हर सवाल की हकीक़त कह देना भी ग़लत है।
भूपेंद्र पथरिया
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