किस राह पे चलें तू ही बता ए ज़िंदगी,
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
ज़ख्म इतने गहरे लग चुके हैं पहले ही,
कि हर ज़ख्म में अब भी दर्द का असर है।
किस राह पर चलें तू ही बता ए ज़िंदगी........
जिस राह पर भी चले मंजिले मकसूद की ओर,
मंजिले मकसूद से पहले ही गुमराह हो गए।
ढूंढते रहे एक आशियां पनाह के वास्ते,
आशियां मिलने से पहले सब रास्ते फना हो गए।
अब किसको पुकारूं, किसे आवाज़ दूं.....,
कौन हमसफर हैं।
किस राह पे चलें तू ही बता ए जिंदगी
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
यूं ही चीखते चिल्लाते रहे दर ब दर,
गूंगे बहरों को अपनी कहानियां सुनाते रहे।
सर फोड़ डाला मगर कुछ भी ना मिला इधर,
बस गली कूचों में ठोकरें खाते रहे।
लौट भी जाऊं तो कैसे, किससे पूछूं.....,
कि मेरा घर किधर है।
किस राह पर चलें तू ही बता ए ज़िंदगी,
अब कौन सी रहा मुक्तसर है।
ज़ख्म इतने गहरे लग चुके हैं पहले ही,
कि हर ज़ख्म में अभी दर्द का असर है।
किस राह पर चलें तू ही बता ए ज़िंदगी......
Bhupendra Patharia
Bhupendra Patharia
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